परिवाि के स्तंभ विश्ि के समाज शिल्पियों न मनष्य क जीिन को अधिकाधिक उन्नत एिं विकशसत बनाने के शिए भौततक और आध्याल्ममक क्षेत्रों से जोडा । िमम,अर्म, विज्ञान, िर्म-व्यिस्र्ा, आश्रम आदि प्रकार के प्रयोग ककए। िेककन जीिन में विशभन्न िहिओ का एकीकरर् करत हए उन्होंन िररिार सस्र्ा का तनमार् ककया । परिवाि क दो स्तभ होत ह परुष औि नािी। इन क बिबत िर ही जीिन और िररिार का तनमार् होता ह। यह स्तंभ वास्तव में शिव-िक्तत, चेतना- ऊर्ाा, प्रेम- अर्ा के स्वरूप समझे र्ा सकते हैं। इस स्तंभ की न ंव है आपस सामंर्स्य, एक दसि क पिक होने का औि एक दसि को पिक बनान का। अध्ययन- शिक्षा, व्यल्ततमि, िाररिाररक जीिन, कररयर, और राजनीततक कायमक्रमों सदहत कई क्षेत्रों में िोनों शिंगों क अनभि, रुची और विश्िास शभन्न- शभन्न है । शिंग असमानता अिग-अिग सस्कततयों म शभन्न-शभन्न तरीकों से अनभि की जाती ह। उनकी ववशभन्नताओं औि असमानताओं का कािण र् व- ववज्ञान, मनोववज्ञान, काल एवं परिक्स्र्तत औि सास्कततक मानदड ह। ककत अन्य कई असमानताए सामाक्र्क रूप स तनशमत प्रत त होत हैं । ऐसा ही एक सामाल्जक कारर् है नारीिाि। ल्जसमें अधिकांि सवििाए, अधिकार और महमि स्त्री को दिए जाने की अिेक्षा की जाती है। कभी िह मां के रूि में िजी जाती है, तो कभी िरुष की सफिता का क्षेय उसे दिया जाता है। कोई भी सामाल्जक सवििा हो,मदहिाओं और िड़ककयों को अबिा समझकर प्रार्शमकता िी जाती है। स्कि या कािेज का िाखििा हो, या कफर रेि और मेट्रो में दिकि और स्र्ान का आरक्षर् हो या कफर कर में छि । और तो और अर्व्यिस्र्ा, बाजार और कानन प्रमयक्ष और अप्रमयक्ष रूि स मदहिा कदित नीततया िर आिाररत है। मदहिाओं को सितत एिं सरक्षक्षत करने के शिए हम िरुषों की उिेक्षा कर रहें हैं। िाररिाररक उन्नतत क चार मि स्तभ -स्िास््य ,शिक्षा ,समद्धि ि आिसी सबि । जरा नारीिाि का चश्मा हिा कर िेखिए इनमें से ऐसा कौन सा क्षत्र ह जहा िरुष योगिान नहीं करते हैं। ऐसा कौन सा काम है र्ो परुष नही किते हैं, बताइए ऐस कौन स भावनाएं है र्ो परुष महसस नही किते हैं। उनके महत्वाकांक्ष औि व्यावहारिक होना- शसर्ा नािी को ही नहीं बक्कक पि ववश्व को एक अलग औि महत्वपण आयाम प्रदान किता है। कफर भी िता नहीं तयों िरुषों का स्र्ान िसरा कर दिया गया। हर स्त्री यह जानती और मानती भी है की जीिन के हर िड़ाि िर,उसे अबिा से सबिा बनाने में िरुषों का अतपय योगिान रहा है। ककसी भी बच्चे की िहिी िहचान उसके माता-विता है। संतान का िािन- िोषर् माता विता ने हमेिा साझेिारी से ककया। माताओं ने यह बात बार-बार स्िीकार कक है कक हम अकेिे बच्चों को एक सफि ियस्क बनाने में असमर्म है। माता-वपता एक पक्ष के दो पंख हैं औि अगि एक भ पंख ना हो तो पक्ष उड़ नहीं पाएगा। मत भशलए मां ने हम 9 महीन पट म िखा तो वपता न अगल ककतन सालों तक कध पि भ घमाया ह। वपता के निम ,गिम औि गंभ ि व्यवहाि ने हमें उत्तिदातयत्व, कत्ताव्य पिायणता, स्वाशभमान औि क्र्म्मेदािी का पाठ पढा कि र् वन
Interpersonal Skills and Indian Mythology: Lessons for the Modern Workplace In a bustling corporate boardroom, tensions simmered as two senior executives clashed over their strategic approach. The project at hand was critical, with looming deadlines and mounting pressure, yet progress had stalled. A seasoned CEO, observing the discord, calmly addressed the room. Instead of offering direct solutions, he shared a story from ancient Indian wisdom that would shift their perspectives. "Back in the Vedic Era," he began, "leaders weren’t just strategists; they were mentors, guiding their people through more than just tasks—they guided through values, communication, and respect. Take the example of Guru Brihaspati, the revered teacher of the gods. His guidance wasn’t about asserting power; it was about understanding, listening, and fostering unity. When the gods faced turmoil, Brihaspati emphasized dialogue, empathy, and shared responsibility to resolve conflicts. It wasn’t hi...
Must read article!!
ReplyDeleteThanks dear
DeleteVery good dear 👏👏
ReplyDeleteThanks
DeleteNice
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