एक दिन मेरे बेटे ने कहा, मांं आप समझ ना पाओगे। आप 20वीं सदी में पले बढ़े, हमारी सदी 21वीं है। बरसों बाद सुनकर 20वीं सदी,याद आई मुझे अपने बचपन की । बचपन के वे चहकते दिन, कितने सुहाने लगते थे । घुमा कर जादू की छड़ी, काश!! कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन। लो मां, टाइम मशीन बनाता हूं, और तुम को वहां ले जाता हूं। पर, मां क्या करोगी?, अगर मिल जाए बीते हुए दिन। सपना यह सच हो जाए, तो तुम्हें परियों के जहान में ले जाऊंगी। तुम्हारे दौर की नींव जहां, उस डगर की सैर करवाऊंगी। बैर, द्वेष से कोसो दूर,कोई होड़ न चिंता थी। न कैमरा न व्हाट्सएप ,आंखों में बंद सबकी पिक्चर थी । कागज के पत्रों पर सबके, अपडेट हमेशा मिलते थे। मन करता है वैसा एक पत्र , मैं सब सखियों को लिख डालूं। बुलाकर उनको भी वहां पर, बचपन के सारे खेल, खेल डालूं। पापा के आंगन की परी और मां के आंचल की दुलारी बनूं। एक बार फिर मैं जी ल...