एक दिन मेरे बेटे ने कहा, मांं आप समझ ना पाओगे।
आप 20वीं सदी में पले बढ़े, हमारी सदी 21वीं है।
बरसों बाद सुनकर 20वीं सदी,याद आई मुझे अपने बचपन की ।
बचपन के वे चहकते दिन, कितने सुहाने लगते थे ।
घुमा कर जादू की छड़ी, काश!! कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन।
लो मां, टाइम मशीन बनाता हूं, और तुम को वहां ले जाता हूं।
पर, मां क्या करोगी?, अगर मिल जाए बीते हुए दिन।
सपना यह सच हो जाए, तो तुम्हें परियों के जहान में ले जाऊंगी।
तुम्हारे दौर की नींव जहां, उस डगर की सैर करवाऊंगी।
बैर, द्वेष से कोसो दूर,कोई होड़ न चिंता थी।
न कैमरा न व्हाट्सएप ,आंखों में बंद सबकी पिक्चर थी ।
कागज के पत्रों पर सबके, अपडेट हमेशा मिलते थे।
मन करता है वैसा एक पत्र , मैं सब सखियों को लिख डालूं।
बुलाकर उनको भी वहां पर, बचपन के सारे खेल, खेल डालूं।
पापा के आंगन की परी और मां के आंचल की दुलारी बनूं।
एक बार फिर मैं जी लूं बचपन के वे सुनहरे दिन।
मुस्कराकर, मैं बोली, बेटा ,टाइम मशीन का काम नहीं ।
उम्र का साल कोई भी हो,बस धड़कनो में,नशा जीने का हो।
बचपन का बस सार इतना, जीवन के हर पल में बसा लो।
चलो नई सोच का बीज बोए, जीवन चक्र को बढ़ने दे।
उम्र चाहे पचपन क्यों ना हो जाए, उसको बचपन से जुड़ने दें ।
मां, अब मैं समझा 20वीं सदी की तुम कुमारी और 21वीं की शक्ति हो।
गले लगाकर बेटे को , मैं बोली ,तेरी इन प्यारी बातों में,
लौट आए मेरे बीते हुए दिन।
Great content❤️❤️
ReplyDelete😊
DeleteBeutiful words 💞💞
ReplyDeleteThank you
Delete😊
ReplyDeleteGajab. Shaandar.
ReplyDeleteThank you very much
DeleteWow!! Amazing!!
ReplyDeleteWonderful poetry. Keep writing!
ReplyDeleteThanks a lot
DeleteAmazing. Nicely written ❤️
ReplyDeleteThanks dear.This poem has inspired from conversation between me n Soham
Delete👍 nice
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